मंगलवार, 11 जनवरी 2011

उदंकार

उदंकार- 
जैगड़ियोंक,
ग्यसौक-छिलुका्क रां्फनौक
ट्वालनौंक और
जूनौक जस
ज्ञानौक
जब तलक
न हुंन,
तब तलक-
लागूं अन्यारै उज्यावा्क न्यांत 


क्वे-क्वे
आं्खन तांणि
हतपलास लगै
हात-खुटन
आं्ख ज्यड़नैकि
कोशिश करनीं,


फिर लै
को् कै सकूं-
खुट कच्यारा्क
खत्त में
नि जा्ल,
हि्य कैं
क्वे डर 
न डराल कै।


हिन्दी भावानुवाद : उजाला

उजाला-
जुगनुओं का,
गैस का-छिलकों की ज्वाला का
भुतहा रोशनियों और
चांदनी की तरह
ज्ञान का 
जब तक
नहीं होता
तब तक
अंधेरा ही लगता है उजाले जैसा।


कोई-कोई
आंखों को तान कर
हाथों से टटोल कर
हाथ-पैरों में
आंखें जोड़कर
कोशिश करते हैं,


फिर भी
कौन कह सकता है (पूरे विश्वास से)
पांव कीचड़ के
गड्ढे में 
नहीं सनेंगे, 
दिल को कोई डर
नहीं डरा सकेगा।

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